भारत के प्रधानमंत्री का पद ब्रिटेन के प्रधानमंत्री के जैसे
भारत में संसदीय शासन प्रणाली को अपनाया गया है. जिसके तहत् प्रधानमंत्री बहुमत दल का नेता होता है.
जिसे लोकसभा में बहुमत का समर्थन प्राप्त होता है. इस कारण भारत में प्रधानमंत्री का पद ब्रिटेन के प्रधानमंत्री के जैसे
सर्वाधिक महत्वपूर्ण एवं शक्तिशाली माना जाता है.

भारत में प्रधानमंत्री की स्थिति अनु.75 (1)
शासन की वास्तविक शक्ति प्रधानमंत्री के हाथों में होती है.
अपनी बात को और अधिक स्पष्ट करते हुए मैं यहां पर सरल शब्दों में आपको दूँ कि भारत के संविधान में भारत के लिए
जो शासन-प्रणाली चुनी गई है वह है संसदात्मक शासन पद्धति. जिसके अनुसार भारत की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होगी.
लेकिन मात्र औपचारिक या नाममात्र का प्रधान. क्योंकि व्यवहारिक रूप से समस्त शक्तियों का प्रयोग
प्रधानमंत्री (मंत्रिपरिषद) के द्वारा किया जाता है.
प्रधानमंत्री मंत्रिपरिषद का निर्माण एवं उसका संचालन करता है. प्रधानमंत्री मंत्रिपरिषद
की नींव का पत्थर है. यदि प्रधानमंत्री अपने पद से त्यागपत्र दे दे या फिर मृत्यु हो जाये तो ऐसी स्थिति में तत्काल
मंत्रिपरिषद का अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा. “वास्तव में, प्रधानमंत्री सम्पूर्ण शासन तंत्र की धुरी है.”
प्रधानमंत्री की नियुक्ति अनुच्छेद 75 (1)
संवैधानिक रूप से प्रधानमंत्री की नियुक्ति संविधान के अनुच्छेद 75(1) के अंतर्गत राष्ट्रपति द्वारा की जाती है.
प्रधानमंत्री की नियुक्ति की शक्ति राष्ट्रपति की स्वविवेकीय शक्ति नही है. क्योंकि राष्ट्रपति किसी भी व्यक्ति को अपने स्वविवेक से प्रधानमंत्री नियुक्त नही कर सकते. राष्ट्रपति केवल उसी व्यक्ति को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित या नियुक्त
करते हैं बहुमत दल का नेता होता है.
राष्ट्रपति अपने स्वविवेक का उपयोग ऐसी स्थिति में कर सकता है, जब लोकसभा में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत ना मिला हो. तब राष्ट्रपति जिस दल के नेता को मंत्रिपरिषद बनाने में अधिक योग्य एवं सक्षम समझेगा उस दल के नेता को प्रधानमंत्री पद के लिए आमंत्रित करेंगे.
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संसद के दोनों में से किसी एक की सदस्यता
प्रधानमंत्री पद पर नियुक्त होने वाले व्यक्ति को संसद के दोनों सदनों लोकसभा एवं राज्यसभा में से किसी भी सदन का सदस्य होना चाहिए. कोई ऐसा व्यक्ति जो संसद के किसी भी सदन का सदस्य नही है प्रधानमंत्री नियुक्त हो सकता है, लेकिन उसे 6 माह के भीतर संसद के किसी भी सदन का सदस्य बनना होगा. यदि अवधि के पूरा होने पर भी किसी भी सदन की सदस्यता नही हो तो प्रधानमंत्री को अपने पद से त्यागपत्र देना होगा.
भारत में प्रधानमंत्री प्रायः लोकसभा का सदस्य होता है लेकिन ऐसी किसी प्रकार की संवैधानिक बाध्यता नही है.
कि प्रधानमंत्री बनने के लिए लोकसभा का ही सदस्य हो.
श्रीमती इंदिरा गांधी जब प्रधानमंत्री (1966) बनी थी तब वह राज्यसभा की सदस्य थीं.
एच. डी. देवगौड़ा और मनमोहन सिंह जब प्रधानमंत्री बने तब वे भी राज्यसभा के सदस्य थे.